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Rahim ke dohe ये शब्द आपने बहुत बार सुने होंगे। 

रहीम दास जी जिनका पूरा नाम अब्दुल रहीम खान-ए-खाना था, उन्होंने ने जिन दोहो की रचना की थी आज वही दोहे पुरे विश्व में Rahim ke dohe के नाम से प्रसिद्ध है।

इन दोहो में रहीम जी ने कुछ ऐसी बातें की है जिनको हर व्यक्ति अपने जीवन में अपना सकता है और एक बेहतर जीवन की और बढ़ सकता है।

इन दोहों के जादू का अंदाज़ा तो आप इसी बात से लगा सकते की 15 और 16 के दशक में लिखे गए इन दोहो को लोग आज भी पढ़ते है

और आज भी वह इन दोहो में कही गयी बातो को समझ कर, उन्हें अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करते है।

बहुत सारे बड़े बड़े गायक इनकी कही बातो को कईं बार अपने गानों में प्रयोग करते है।

जब हम नीचे आपको इनके कुछ दोहे बतायंगे तो मुझे यकीन है की आप पाएंगे की आपने यह लाइन्स पहले कहीं ना कहीं ज़रूर सुनी है।

अगर हम रहीम जी के दोहो की तारीफ करने लगे तो हम 2 से 3 ब्लॉग तो केवल इनकी तारीफ में ही लिख सकते है।

यदि आप सोच रहे है की इनमें ऐसा क्या खास है तो आप चिंता मत कीजिये, आज जब आप इस ब्लॉग में नीचेलिखे Rahim ke dohe पढ़ेंगे तो आप इस सवाल का जवाब खुद ही जान जायेंगे।

Rahim जी कौन थे?

Rahim ke dohe बताने से पहले हमनें सोचा की आप में से कईं लोग ऐसे होंगे जो यह जानते ही नहीं होंगे की रहीम जी कौन है। 

तो उन लोगों के लिए हम जल्दी से रहीम जी के बारे में थोड़ी जानकारी दे देते है, ताकि आप यह जान पाओ की रहीम जी थे कौन।

रहीम जी का जन्म 17 दिसंबर 1556 को लाहौर हुआ था, इनके पिता का नाम बैरम खान और माता का नाम सईदा बेगम था। 

यह बादशाह अकबर जी के नवरत्नों में से एक थे, इनके लिखे दोहो ने हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 

बादशाह हुमायूँ की मृत्यु के बाद इनके पिता ने ही बादशाह अकबर को 13 वर्ष की उम्र में बादशाह बनाया था। 

जब इनकी उम्र केवल पांच वर्ष थी, उस समय बादशाह अकबर ने ही इनके पिता की मृत्यु एक अफगानी पठान के हाथो करवा दी थी। 

रहीम जी सभी धर्मो को एक समान मानते थे, वह मुसलमान होकर भी कृष्ण भक्ति किया करते थे और बाकि देवी देवताओ की पूजा पाठ में भी सिम्मलित हुआ करते थे। 

उनकी काफी रचनाओं में आपको रामायण, महाभारत, गीता आदि ग्रंथो का उल्लेख मिल जाएगा। 

Rahim Ke Dohe और रचनाएँ क्यों इतनी महत्वपूर्ण है?

Rahim Ke Dohe और रचनाएं महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे एक मशहूर संत, कवि और साहित्यिक थे जिन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज को आदर्श और ज्ञान के संदेश प्रदान किए। रहीम जी की रचनाएं महाकवि रहीम के नाम से प्रसिद्ध हुई हैं। यहां हमने कुछ महत्वपूर्ण कारण बताये हैं जो रहीम जी की रचनाओं को महत्वपूर्ण बनाते हैं:-

सामाजिक संदेश

रहीम जी की रचनाएं सामाजिक मुद्दों, धार्मिकता, सद्भावना और न्याय के महत्व को बताती हैं। Rahim Ke Dohe व्यापक रूप से व्याख्यान करते हैं कि समाज के लिए धर्मनिरपेक्षता, सहानुभूति और विचारशीलता की आवश्यकता होती है।

आध्यात्मिक अर्थव्यवस्था

रहीम जी की रचनाएं आध्यात्मिकता, ईश्वरीय मार्ग, आत्म-साक्षात्कार और मानवीय संबंधों के महत्व को स्पष्ट करती हैं। 

शिक्षाप्रद

Rahim Ke Dohe और रचनाएं शिक्षाप्रद होती हैं। उनके दोहे में छोटे-छोटे सत्यों, जीवन के मूल्यों और नीतियों का संक्षेपवादी रूपांतरण होता है। यह उन्हें मानवता, ईमानदारी, मेहनत, समय का महत्व और उच्चता की महत्ता जैसे महत्वपूर्ण गुणों की महत्वता का संदेश प्रदान करती हैं।

सरलता और सुंदरता

रहीम जी की रचनाएं अपनी सरलता और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके दोहे आसान भाषा में होते हैं और सीधे मन को छू लेते हैं। इसके परिणामस्वरूप, उनकी रचनाएं जनमानस को सुगमता से समझने और स्वीकार करने की क्षमता देती हैं।

साहित्यिक महत्व

रहीम जी की रचनाएं हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनकी कविताएं और दोहे साहित्यिक मानकों के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुके हैं। रहीम जी के दोहों में छंद और रस का उपयोग किया गया है जो उन्हें साहित्यिक महत्वपूर्ण बनाता है।

8 Rahim Ke Dohe (अर्थ के साथ)

रहीम जी ने अपने जीवन में बहुत सारे दोहों की रचना की है, उनकी संख्या इतनी अधिक है की हम उन सभी को एक ब्लॉग में शेयर भी नहीं कर सकते,

इसलिए हम यहाँ उनके कहे कुछ प्रसिद्ध दोहो की बात करेंगे और साथ में उनको कहे शब्दों को आपको जितना सरलता से समझा सके उतनी सरलता से समझाने की कोशिश करेंगे। 

हम नीचे उन Rahim ke dohe की भी बात करेंगे जो हमें पर्सनली बहुत अच्छे लगते है। 

आप भी इन दोहो को पढ़ना और अपने आप से इनका अर्थ समझने की कोशिश करना और यदि आप अर्थ नहीं समझ पाते,

तो आप हमारी दी गयी परिभाषा से इन दोहों का अर्थ समझ सकते है।

ऐसा करने से आप Rahim ke dohe को केवल पढोगे ही नहीं बल्कि आप उनके असली अर्थ को भी जान पाओगे। 

आप यह जान पाओगे की रहीम जी कहना क्या चाहते थे और उसके बाद आप उनकी बातों को अपने जीवन में अपना कर, अपने जीवन को और बेहतर कर सकते हो. 

चलिए अब आपका ओर समय नहीं लेते है और जल्दी से आपके सामने Rahim ke dohe पेश करते है। 

Rahim Ke Dohe: 1 

rahim ke dohe : 1

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग ।

न्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग ॥

इस दोहे के माध्यम से रहीम जी यह कहना चाहते है की यदि कोई व्यक्ति अच्छा स्वभाव रखता है, उसके मन में अच्छे विचार रहते है,

तो कोई बुरी संगति वाला व्यक्ति भी उस अच्छे व्यक्ति को बिगाड़ नहीं सकता, जैसा की आज के समय में लोग कहते है की वह एक अच्छा इंसान था, 

लेकिन उस दूसरे व्यक्ति के साथ मिलने के बाद वह भी बुरी संगति में आ गया, लेकिन ऐसा नहीं होता जिस व्यक्ति के मन में अच्छे विचारो का वास होता है, उसके विचारो को कोई बदल नहीं सकता। 

इस बात को रहीम जी ने सांप और चन्दन के वृक्ष के उदहारण से समझाया है, की कैसे चन्दन के वृक्ष पर जहरीला साँप कितनी भी देर लिपटा रहे,

उस वृक्ष पर साँप के ज़हर का किसी प्रकार को कोई असर नहीं होता और वह फिर भी महकता रहता है।

Rahim Ke Dohe: 2 

rahim ke dohe : 2

रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि ।

जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि ॥

Rahim ke dohe में हमनें आज तक रहीम जी के जितने भी दोहे पढ़ें है, उनमें से यह दोहा हमें सबसे अच्छा लगता है। 

इस दोहे में रहीम जी कहना कहते है हमें बड़ी चीज़ो की लालच में छोटी चीज़ो को कभी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। 

हम अपने जीवन में अक्सर ऐसा करते है की हम बड़ी चीज़ो पर ध्यान देते है और उनको पाने के लालच में हम वो छोटी छोटी चीज़े जो हमारे पास थी, उन्हें खो बैठते है। 

ऐसे में हम उन बड़ी चीज़ो को तो पा लेते है, लेकिन फिर हमें वो छोटी चीज़े जिन्हे अब हम खो चुके है, उनकी कीमत समझ में आने लगती है। 

इस बात को भी रहीम जी ने एक बहुत अच्छे से सुई और तलवार के उदाहरण से समझाया है। 

रहीम जी इन दोनों चीज़ो का उदहारण देते हुए कहते है की जो काम एक सुई का है, वह काम आप किसी तलवार की मदद से नहीं कर सकते। 

इसलिए हमें इन छोटी छोटी चीज़ो को भी कम नहीं आंकना चाहिए और उनकी असली कीमत को समय रहते समझना चाहिए।

Rahim Ke Dohe: 3 

rahim ke dohe : 3

रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार। 

रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।।

अगर आपने कभी भी Rahim ke dohe नहीं पढ़े, तब भी हमें यकीन है की आपने यह दोहा तो कहीं ना कहीं पढ़ा ही होगा और या फिर आपने इसे कहीं ना कहीं ज़रूर सुना ही होगा। 

इस दोहे के माधयम से रहीम जी यह कहना चाहते है की यदि आपके जीवन में कोई ऐसा इंसान है जो की आपके लिए बहुत खास है तो आप को उसे कभी खोना नहीं चाहिए। 

वो यदि आप से सौ बार भी रूठे तो आपको उसे सौ बार मानना चाहिए, लेकिनआपको उस विशेष इंसान और अपने बीच कभी दूरियां पड़ने नहीं देनी चाहिए।

इस दोहे में भी रहीम जी ने एक बहुत ही अच्छा उदाहरण दिया है, वह कहते है की जैसे मोती की माला टूटने पर भी उसके मोतियों को रख लिया जाता है,

और फिर उन मोतियों से नयी माला पिरो ली जाती है, उसी प्रकार से यदि आपके जीवन में कोई ऐसा है जो आपके लिए कीमती है तो उनसे छोटी छोटी बातो पर रिश्ता नहीं तोडना चाहिए। 

Rahim Ke Dohe: 4 

rahim ke dohe : 4

चाह गयी चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह ।

जिनको कछु ना चाहिए, वे साहन के साह ॥

इस दोहे में रहीम जी ने एक बहुत ही बड़ी बात कही है, यह बात आज के समय में लालच में बस भाग रहे लोगों को एक बहुत ही अच्छी सिख दे सकती है। 

इस दोहे में रहीम जी यह कहना चाहते है की जिस इंसान को कुछ नहीं चाहिए वह इंसान राजाओं का भी राजा है। 

क्यूंकि उस इंसान का कुछ नहीं चाहिए तो उस इंसान को किसी चीज़ की चिंता नहीं है, वह अपनी ज़िदंगी को बेपरवाह हो कर ज़ी सकता है। 

और जिस व्यक्ति को अपने जीवन में किसी प्रकार की चिंता नहीं है, उस व्यक्ति से बड़ा राजा तो कोई हो नहीं सकता, क्यूंकि वह तो पहले ही अपने जीवन का राजा है। 

Rahim Ke Dohe: 5 

rahim ke dohe : 5

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।

पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून ॥

इस दोहे से आप यह जान पायंगे की रहीम जी कितने बड़े विद्वान थे। 

रहीम जी ने इस दोहे में बड़ी ही ख़ूबसूरती से पानी शब्द को तीन बार अलग अलग अर्थ बताते हुए प्रयोग किया है। 

पहली बार उन्होंने पानी को विनम्रता के लिए प्रयोग किया है, उन्होंने कहा है मनुष्य को अपने स्वभाव में हमेशा विनम्रता रखनी चाहिए। 

दूसरी बार पानी को चमक के लिए प्रयोग किया गया है और तीसरी बार पानी को पानी की तरह ही इस्तेमाल किया गया है। 

इस दोहे में रहीम जी कहना चाहते है की जैसे आप बिना पानी के आटे को इस्तेमाल नहीं कर सकते (दोहे में आटे के लिए चून शब्द का प्रयोग किया है),

बिना चमक के मोती का भी कोई अस्तित्व नहीं है, उसी प्रकार से विनम्रता के बिना मनुष्य के जीवन का भी कोई अर्थ नहीं है, इसलिए मनुष्य को अपने जीवन में विनम्रता को ज़रूर अपनाना चाहिए। 

Rahim Ke Dohe: 6

rahim ke dohe : 6

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।

टूटे तो फिर ना जुरे, जुरे गांठ परी जाय।।

इस दोहे की तो क्या ही बात की जाए, Rahim ke dohe में जितने भी दोहे है, उन दोहो में इस दोहे की हमारे दिल में एक खास जगह है। 

इस दोहे का जो अर्थ है वह बिलकुल दिल को छू लेता है, जिस प्रकार के शब्दों का प्रयोग इस दोहे में किया गया है, वह काबिले तारीफ है। 

सबसे खास बात जो इस दोहे की हमें लगती है, वह है की इस दोहे में जिन शब्दों का चयन किया गया है वह बहुत ही सरल है। 

जिस वजह से इस दोहे को समझना बहुत ही आसान हो जाता है, आप में से बहुत लोगों ने तो इस दोहे के अर्थ को बहुत हद तक समझ ही लिया होगा। 

लेकिन यदि आप इसका अर्थ समझ नहीं पाए हो तो हम इसमें आपकी मदद कर देते है। 

इस दोहे में रहीम जी ने रिश्तो की नाजुकता को दर्शाया है, इस दोहे में उन्होंने ने रिश्तो की तुलना धागे से की है। 

वह कहते है की रिश्ते धागे की तरह होते है, उनको बहुत ही संभाल कर रखना चाहिए, ज़रा सी गलती से यह धागे रूपी रिश्ते टूट सकते है। 

और यदि एक बार रिश्ते टूट गए तो भी आप उन्हें पहले जैसा नहीं कर सकते, दोबारा जुड़ने पर भी रिश्तो में एक अनबन रहती है, जैसे टूटे धागो को दोबारा जोड़ने पर उनमें भी गांठ पड़ जाती है। 

Rahim Ke Dohe: 7 

rahim ke dohe : 7

बिगरी बात बनै नहीं, लाख करों किन कोय ।

रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ॥

रहीम जी इस दोहे में कहना चाहते है की मनुष्य को अपने व्यवहार पर बहुत ध्यान देना चाहिए। 

उसे हमेशा सोच समझ कर व्यवहार करना चाहिए, क्यूंकि एक बार बात बिगड़ गयी तो आप फिर उस बात को पहले जैसा नहीं कर सकते। 

इस दोहे में भी रहीम जी ने एक बहुत ही अच्छा उदहारण दिया है, यह Rahim ke dohe की सबसे खास बात है की रहीम जी बहुत अच्छे से उदहारण के साथ अपनी बात को समझाते थे। 

रहीम जी ने यहाँ अपनी बात को समझाने के लिए फटे दूध का उदहारण दिया है, वह कहते है की जैसे एक बार दूध फट गया, 

उसके बाद आप उसे कितना भी मथ लो आप उसमें से मक्खन नहीं निकल सकते।

उसी तरह से यदि आपके व्यवहार की वजह से कोई बात बिगड़ गयी तो उसके बाद आप कितना भी प्रयास कर लो, आप उस बात को फिर संभाल नहीं पाओगे। 

Rahim Ke Dohe: 8

rahim ke dohe : 8

दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं ।

जान परत हैं क पिक, रितु बसंत के माहि ॥

इस दोहे में रहीम जी ने बहुत ही अच्छी बात कही है, इस दोहे के माध्यम से वह यह कहना चाहते है की हमें मनुष्य को कभी उसके बाहरी रूप से उसके मन का अंदाज़ा नहीं लगाना चाहिए। 

क्यूंकि एक जैसे देखने वाले दो व्यक्ति का स्वभाव अलग अलग हो सकता है। 

यहाँ भी रहीम जी ने एक बहुत ही अच्छा उदहारण दिया है, वह यहाँ कौआ और कोयल का उदहारण देते है और बताते है की दिखने में बेशक दोनों पक्षी काले रंग के है। 

लेकिन जब हम इनकी वाणी सुनते है तो हमें इन दोनों के अंतर को जान पाते है, एक तरफ कोयल है जिसकी वाणी सुन के दिल खुश हो जाता है और दूसरी तरफ कौआ है जिसकी आवाज़ कानो का फाड़ कर रख देती है। 

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Conclusion(Rahim ke dohe)

तो यह था आज की ब्लॉग Rahim ke dohe के बारे में। 

इस पोस्ट में हमें आपके सामने रहीम जी के कुछ खास दोहो के बारे में आपको बताया, हमनें इस ब्लॉग में आपके साथ इन दोहो का अर्थ भी शेयर किया है। 

लेकिन यदि आपको लगे की हम किसी दोहे का अर्थ उतने बेहतर तरीके से नहीं समझा सके और उसका मतलब कुछ विपरीत निकल रहा है। 

तो आप हमें कमेंट सेक्शन में ज़रूर बताये, हम जल्द से जल्द अपनी गलतियों में सुधार करेंगे। 

FAQs 

रहीमदास जी की मृत्यु कब हुई?

1626 ई. में 70 वर्ष की आयु में रहीमदास जी की मृत्यु हो गयी।

रहीमदास जी का पालन-पोषण किसकी देख रेख में हुआ?

रहीमदास जी जब 5 साल के थे, तभी गुजरात के पाटन नगर में इनके पिता की हत्या कर दी गयी। इसलिए रहीमदास जी पालन-पोषण स्वयं अकबर की देख-रेख में किया गया।